स्वामी आनंद अरूण ने नेपाल में ओशो कीअस्थियाँ को सुरक्षित रख उनकी विरासत को आगे बढ़ाया
नई दिल्ली, 21 अगस्त, 2023: पाया गया है कि पूज्य गुरू भगवान श्री रजनीश उर्फ ओशो की विरासत को सुरक्षित रखने के भावुक प्रयास में स्वामी आनंद अरूण 1990 में गुरूजी की विवादास्पद मृत्यु के समय ओशो कीअस्थियाँ के एक हिस्से को नेपाल लेकर आए। यहअस्थियाँ तब से वर्तमान तक नेपाल में उनके आश्रम ओशो तपोबन में दो ‘समाधियों’ मे निहित है। दावा है कि मूल समाधि की स्थापना ओशो की इच्छानुसार पुणे में ओशो आश्रम में की गई थी, जिसकी मौजूदगी को पुणे आश्रम के प्रबन्धन द्वारा विवादास्पद रूप से खंडित किया गया है।
80 वर्षीय स्वामि अरूण ओशो के पहले शिष्य हैं और दुनिया भर में ओशो के 100 से अधिक समुदायों एवं केन्द्रों के पीछे दूरदृष्टा हैं। नेपाल में स्थित ओशो तपोबन, आध्यात्मिक केन्द्र है, जो ओशो सन्यासियों के समूह के साथ मिलकर उनके द्वारा किए गए प्रयासों का परिणाम है। इस अभ्यारण्य के बीज 1986 में ओशो के नेपाल दौरे के समय बोए गए, तब से अब तक यह स्थान आध्यात्मिक रूप से विकसित होकर दुनिया भर में लोकप्रिय हो गया है। ओशो कीअस्थियाँ के कुछ हिस्से को नेपाल लाकर स्वामी आनंद अरूण ने सुनिश्चित किया कि उनकी पवित्र शिक्षाएं इस पावन स्थल पर बनी रहें, ताकि लोग इन्हें समझ सकें और ये आज के दौर में प्रासंगिक हो जाएं।
स्वामी आनंद अरूण कहते है ‘‘ओशो की विरासत को सुरक्षित रखना सिर्फ हमारा कर्तव्य नहीं बल्कि एक आह्वान है। ओशो की शिक्षाओं में जीवन में बदलाव लाने तथा सजगता बढ़ाने की अद्भुत क्षमता है। हमारी ज़िम्मेदारी है कि हम यह सुनिश्चित करें कि उनकी शिक्षाएं आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचें।’’
यह उल्लेखनीय विकास कार्य नेपाल में ओशो अनुयायियों का जश्न मनाता है साथ ही नेपाल में पर्यटन को बढ़ाने का वादा भी करता है। दुनिया भर से ओशो के अनुयायी ओशो तपोबन की ओर आकर्षित होंगे, जिससे नेपाल आध्यात्मिक गंतव्य के रूप में स्थापित हो जाएगा।
ओशो की विरासत अब स्वामी आनंद अरूण द्वारा सुरक्षित रख दी गई हैं, जो ओशो की शिक्षाओं के प्रसार के लिए प्रतिबद्ध हैं। ओशो की जीवन शिक्षाएं प्यार, मनन पर आधारित हैं और दुनिया भर केलोगों को प्रेरित करती रहेंगी। स्वामी आनंद अरूण का यह प्रयास इन प्रभावों को बनाए रखने की उनकी प्रतिबद्धता की पुष्टि करता है।